प्रथ� विश्� युद्� के विक्टोरिया क्रॉ� के भारती� विजेता गोबिंद सिंह
प्रथ� विश्� युद्� मे� विक्टोरिया क्रॉ� प्राप्तकर्ता गोबिंद सिंह की कहानी�

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प्रथ� विश्� युद्� मे� भारत के छह योद्धाओं को ब्रिटे� मे� वीरत� के लि� दिया जाने वाला सर्वोच्च पुरस्कार विक्टोरिया क्रॉ� प्रदान किया गय� � शताब्दी स्मरणोत्सव के तह� ब्रिटे� के लोगो� ने उन साहसी पुरुषो� की मातृभूमि को उनके ना� उत्कीर्� की हु� कांस्य की स्मारक पट्टिक� पे� करते हु� अपनी कृतज्ञता व्यक्त की� इस पुराले� मे� उनकी कहानी का उल्लेख है�
ना�: गोबिंद सिंह
जन्म की तारी�: 7 दिसम्ब� 1887
जन्म का स्था�: दामोरई गांव, राजस्थान
युद्� की तारी�: 1 दिसम्ब�, 1917
युद्� का स्था�: पेइजेइर्�, फ्रांस
श्रेणी: लांस दफादार
रेजिमेंट: लाइट कैवलरी, भारती� सेना
गोबिंद सिंघ का जन्म 7 दिसम्ब� 1887 मे� भारत के राजस्थान राज्� के दामो� गांव मे� हु� था� वे 28 वे� लाइट कैवलरी (घुड़सवा� सेना), जो प्रथ� विश्� युद्� के दौरा� दूसर� लांस� (गार्डनर्� का घोड़ा) का हिस्सा था, मे� लांस दफेदार (एक नायक के बराब�) थे�
लांस दफ़ेदार गोबिंद सिंह को 1, दिसम्ब�, 1917 को हु� काम्ब्रा� युद्� मे� उनकी वीरत� के लि� विक्टोरिया क्रॉ� पुरस्कार से सम्मानित किया गय� था� इस युद्� के बी� मे� उनका सैन्� दल दुश्मनों से घि� चुका था� मुख्यालय मे� उनके सेनादल को उनकी स्थिति की जानकारी का संदे� भेजन� आवश्यक था� खुले मैदा� मे� लगातार गोलियो� के बौछा� के बी� संदे� भेजन� के जोखि� के बावजूद उन्होंने ती� बा� स्वेच्छा से प्रयास किया� उनका प्रशस्तिपत्र इस प्रकार उल्लेख करता है:
अपने रेजिमेंट और सैन्यद� के मुख्यालय, जो डे� मी� दू� था और लगातार दुश्मन के लगातार निगरानी और भारी गोलाबारी से घिरे हु� खुले मैदा� से होते हु� जाना था, जिनक� बी� ती� बा� स्वेच्छा से संदे� भेजन� की विशिष्� बहादुरी और अपने कर्तव्� के प्रत� समर्पण के लि� उन्हें पुरस्कृत किया जाता है� वे हर बा� संदे� भेजन� मे� कामयाब हु�, भल� ही हर बा� उनके घोड़े को गोली लगी थी और वे पैदल ही अपनी यात्रा तय करने के लि� मजबू� हो गए थे�
गोबिंद सिंह युद्� मे� बच गए थे� 1942 मे� उनकी मृत्यु हुई।